बुधवार, 21 जनवरी 2015

wo kuch bhi na kahe magar wo janta hai ki main kis hall mai hoon aur kyon is hall mai hoon
Poonam Chandrika Tyagi शांत झील मे तिरता पत्ता नीद सुखद सी सोता है , आते है जब बदल घिर घिर सारा अम्बर रोता है , उठती है जो लहर झील मे दर्प से वो इठलाती है जाऊँ अंतस मे सागर झूम झूम कर गाती है , झील मे स्थिर जल सतह को मंद पवन सिहरती है ,इस सिहरन की आहट उस पत्ते तक भी आती है ,विरहासिक्त आकुल मन पत्ता ,शरण झील की पाता है ,और दबी पानी की भाषा मे जलगीत झील का गाता है
द्रग मैं तिरता नीर प्रेम का मन मोहित अकुलाता है भीतर गूंजे गूंगे सुर मन गीत नेह का गता है पूनम चन्द्रिका त्यागी


बेबसी
खामोशी में सुकून तलाशना ,कितना व्यर्थ प्रयास है / ये चीखती खामोशियाँ बहरा करदेती है , इनमे प्रतिध्वनियाँ है तुम्हारे शब्द-की /बंदिशें हो जहाँ साँस -२ पर ,फ़िर भी उड़ जाता है मन /सलाखों के पार नीले आसमानों मे,कोहेरे की धुंदली चादर मे जहाँ हो चुकी हो शुरुआत अंत होने की /पूनम चन्द्रिका त्यागी
भीड़ चली आती है नसिहात्दारों की, हाथों मैं संग है\ , मुद्दों के समझ नहीं ,गफलत का रंग हैं \ अंधकार मन का छिपाते, चन्दन लगते है \बेचते हैं मशविरे खुद को रहनुमां बताते है \ थोपते हैं सोच अपनी औरों पर आदतन ,ऐसे भी बद दिमाग दुनिया मैं चन्द हैं \ लाचार है ये बिचारे खुद, अपनी ही सोच के पिंजरों मे बंद हैं\पर्दों के हिमायती जानते है ,पर्दों के फायदे \पर्दों की आड़ मैं वो , तोड़ते हैं पर्दों के कायदे\ सत्यम शिवम् सुन्दरम से सजा, सर्जन उत्सव का रंग है \शिवलिंग को पूजते हैं हम , शिव अपने संग हैं \. शांति दे प्रभु इन्हे भी ,बैठ सके चैन से घर ये भी \बने फिरते हैं ,फालतू खामेखाहं \, कामो मैं जी लगायें अपने , बेकार औरों की फिकरों मैं तंग हैं पूनम चन्द्रिका त्यागी

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